का रवैया केवल अभिनय ही रहा। इस मुद्दे पर आगे सोचने से पता लगता है कि जनप्रतिनिधियों का लक्ष्य अन्ततोगत्वा जन सम्पदा से अपना खाना-पीना, ऐशो-आराम, संग्रह-सुविधा प्राप्त करना ही है। इस मुद्दे पर सोचने की आवश्यकता है। क्या जनप्रतिनिधि अपने परिवार के बलबूते पर जी कर उपकार रूप में जनप्रतिधित्व करना है या प्रतिफल अपेक्षा करना है।
प्रतिफल अपेक्षा से जो जन प्रतिनिधि काम किये, समाज विरोधी, नियति विरोधी, वन-खनिज विरोधी कार्यों को सर्वाधिक किया। इस बीच अपनी व्यक्तिगत सम्पदा को बढ़ाते रहे। अब ऐसी प्रतिफल अपेक्षा से नेतागिरी करता हुआ से क्या अपेक्षा किया जाये। इस पर भी मन लगा कर संवाद होना चाहिये।
जन प्रतिनिधि संविधान की रक्षा करेगें ऐसी मान्यता है, अभी जितनी भी कथाएँ सुनने में आई है उनमें जनप्रतिनिधि स्वयं संविधान विरोधी होने के कारण दंडित होने की नौबत आती रही। क्या ये सब सच है? यदि सच है तो और क्या किया जाये, कैसे किया जाये जो प्रतिफल अपेक्षा से कार्य करते हैं।
अभी कुछ राज्यों में ग्राम पंचायतों का बोलबाला है। ग्राम पंचायत अपने में ग्राम स्वराज्य के रूप में कार्य करने की परिकल्पना है। ऐसे ग्राम स्वराज्य में सभी को समान न्याय मिल सकता है ऐसा भी सोचा जाता है। सैकड़ों ग्राम पंचायतों के सरपंच जेल में पहुँच गये, हजारों के साथ मुकदमे चल रहे है। क्या ये घटनाएँ सच है? यदि सच है तो जनप्रतिनिधियों से अब और क्या अपेक्षा किया जाये। इस पर सूक्ष्मता से सोचने, निर्णय लेने की आवश्यकता है। लोकमानस यदि समझदारी के साथ जीना बन जाता है तो ग्राम पंचायतें सफल हो सकती है। इस तर्क पर भी परिवारमूलक स्वराज्य व्यवस्था होना चाहिये न कि सरकार शासन। इस पर अपने को जन चर्चा में ध्यान देने की आवश्यकता है।
यह भी चर्चा का मुद्दा है कि हम शासन में जीना चाहते है या व्यवस्था में। यदि शासन चाहते हों तब अभी हो रहे भ्रष्टाचार, दूराचार, अनाचार उसी प्रकार होते रहेंगे। यदि जन मानस इसे नहीं चाहता तो परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था को अपनाना होगा। परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था अपने आप में समझदारी सम्पन्न अनेक परिवारों की संयुक्त व्यवस्था है। प्रत्येक परिवार में उपकार प्रवृत्ति होने के आधार पर स्वत्व स्वतंत्रता अधिकार स्वयंस्फूर्त होता है। इसमें जनप्रतिनिधि किसी भी प्रकार से धन व्यय के बिना उपलब्ध होना एक महिमा सम्पन्न घटना है जिसकी आवश्यकता है। इस प्रकार 10 प्रतिशत व्यक्ति हर गाँव, मुहल्ले, देश में, सम्पूर्ण धरती में