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उपलब्ध होना समीचीन है। इस मुद्दे पर परामर्श कार्य, संवाद सघन रूप में होना चाहिए। इसके लिए हर मानव को समझदार होना आवश्यक है। हर नर-नारी समझदार होना भी चाहते है। समझदारी के लिए वस्तु लोक सम्मुख प्रस्तुत हो चुकी है यही मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद है। इसके आधार पर मानवीय शिक्षा-संस्कार का प्रारूप लोकमानस के लिए अर्पित हुआ है। ये सभी विधा को जन चर्चा में लाकर निष्कर्ष निकालना और स्वयंस्फूर्त विधि से अपनाना सारी दरिद्रता से छुटकारा है।

दरिद्रता का तात्पर्य बौद्धिक रूप में समझदारी में विपन्नता, भौतिक समृद्धि होने में विपन्नता, समाधानित होने में विपन्नता, वर्तमान में विश्वास (अभयता) में विपन्नता, सहअस्तित्व में विपन्नता, व्यवस्था में भागीदारी करने में विपन्नता, उत्पादन कार्य करने में विपन्नता, न्याय-सुरक्षा में विपन्नता, स्वास्थ्य-संयम में विपन्नता, उपकार कार्यों में विपन्नता। ये सभी विपन्नताएँ मानव को दरिद्र बनाने में समर्थ है। इन सभी प्रकार की विपन्नताओं से मुक्ति समझदारी से ही है।

विपन्नताएँ दरिद्रता का द्योतक है। हर मानव समझदारी पूर्वक ही इन सभी विपन्नताओं से मुक्त होता है। सम्पूर्ण क्लेश दु:ख से मुक्त होना स्वाभाविक है। इतना ही नहीं मानव भ्रमवश जितने भी प्रकार से गलती अपराध करता है इन सबका निराकरण समझदारी से होता है। अतएव समझदारी हर मानव के स्वर्णिम भविष्य का, सफल भविष्य एवं सफल वर्तमान का स्त्रोत है। इस पर जनविचार आवश्यक है। सम्पन्नता हर व्यक्ति चाहता है हर नर-नारी चाहता है। सम्पन्नता का पहला वैभव जागृति है, दूसरा सर्वतोमुखी समाधान है, तीसरा न्याय पूर्वक जीना, चौथा उपकार कार्य में निष्ठा रखना, पाँचवा समृद्धि को प्रमाणित करना, छठवाँ व्यवस्था में जीना, सातवाँ समग्र व्यवस्था में भागीदारी करना, आठवाँ सहअस्तित्व को प्रमाणित करना, नौवां सहअस्तित्व को अपने में स्थिर होने के रूप में स्पष्ट करना अनुभव करना, दसवां सहअस्तित्व में अनुभव मूलक विधि से सम्पूर्ण व्यवस्था में निहित कार्यकलापों को स्पष्ट करना, ग्यारहवाँ देव मानव दिव्य मानव होना, स्वयं को प्रमाणित करना, बारहवाँ स्वराज्य स्वतंत्रता को प्रमाणित करना, ये सब नित्य वैभव के मुद्दे है। यह सब जागृति का ही वैभव है। इन सब वैभव के प्रति जनमानस की स्वीकृति के लिए जनचर्चा संवाद होना आवश्यक है। जनमानस अपने में शुभ चाहता ही है। सुख को सम्पूर्ण बारह बिन्दुओं में इंगित कराया है। इसकी आवश्यकता पर जनचर्चा पूर्वक जिज्ञासा को निर्मित करने की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति होने में उक्त सभी बिन्दुओं का स्पष्ट अध्ययन के रूप में मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद प्रस्तुत है।

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