दूसरा प्रश्न -
ब्रह्म ही बंधन एवं मोक्ष का कारण कैसे?
तीसरा प्रश्न -
शब्द प्रमाण या शब्द का धारक वाहक प्रमाण?
आप्त वाक्य प्रमाण या आप्त वाक्य का उद्गाता प्रमाण?
शास्त्र प्रमाण या प्रणेता प्रमाण?
समीचीन परिस्थिति में एक और प्रश्न उभरा
चौथा प्रश्न -
भारत में स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा गठित हुआ जिसमें राष्ट्र, राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय चरित्र का सूत्र व्याख्या ना होते हुए जनप्रतिनिधि पात्र होने की स्वीकृति संविधान में होना।
वोट-नोट (धन) गठबंधन से जनादेश व जनप्रतिनिधि कैसा?
संविधान में धर्म निरपेक्षता - एक वाक्य एवं उसी के साथ अनेक जाति, संप्रदाय, समुदाय का उल्लेख होना।
संविधान में समानता - एक वाक्य, उसी के साथ आरक्षण का उल्लेख और संविधान में उसकी प्रक्रिया होना।
जनतंत्र - शासन में जनप्रतिनिधियों की निर्वाचन प्रक्रिया में वोट नोट का गठबंधन होना।
ये कैसा जनतंत्र है?
11. इन प्रश्नों के जंजाल से मुक्ति पाने को तत्कालीन विद्वान, वेदमूर्तियों, सम्माननीय ऋषि महर्षियों के सुझाव से -
- 1) अज्ञात को ज्ञात करने के लिए समाधि एक मात्र रास्ता बताये जिसे मैंने स्वीकार किया।
- 2) साधना के लिए अनुकूल स्थान के रूप में अमरकण्टक को स्वीकारा।
- 3) सन् 1950 से साधना कर्म आरम्भ किया।
सन् 1960 के दशक में साधना में प्रौढ़ता आया। - 4) सन् 1970 में समाधि संपन्न होने की स्थिति स्वीकारने में आया। समाधि स्थिति में मेरे आशा विचार इच्छायें चुप रहीं। ऐसी स्थिति में अज्ञात को ज्ञात होने की घटना शून्य रही यह भी समझ में आया। यह स्थिति सहज साधना हर दिन बारह (12) से अट्ठारह (18) घंटे तक होता रहा।