1.0×

संदेश

भूमि: स्वर्गताम् यातु, मानवो यातु देवताम् ।

धर्मो सफलताम् यातु, नित्यम् यातु शुभोदयम् ॥

व्यापक शून्यावकाश में स्थित अनन्त ब्रम्हाण्डों में से एक ब्रम्हाण्ड में अंगभूत इस पृथ्वी पर वर्तमान में पाये जाने वाले मानव अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि इनको ह्रास और विकास का अध्ययन एवम् प्रयोग करने का स्वर्णिम अवसर व साधन प्राप्त है ।

अभ्युदय (सर्वतोमुखी समाधान) सबको सर्वत्र उत्प्रेरित कर रहा है कि - “स्वयम् का मूल्यांकन कर लो- गलती अपराध नहीं करोगे फलत: दु:खी, प्रताड़ित और दरिद्र नहीं होगे ।”

स्वयम् का मूल्यांकन करने के लिये स्वयम्-सिद्ध मूलभूत आधार हृदयंगम करना होगा, वह है :-

1. भूमि (अखण्ड राष्ट्र) एक - राज्य अनेक

2. मानव जाति एक - कर्म अनेक,

3. मानव धर्म एक - समाधान अनेक,

4. ईश्वर (व्यापक) - देवता अनेक ।

एक- प्रत्येक मानव मानव मात्र को एक इकाई के रूप में जाने और उसके साथ तदनुसार निर्वाह कर सके - ऐसी क्षमता, योग्यता और पात्रता सहज विकास के लिए,

दो- सहअस्तित्व, सन्तुलन, समाधान, अभय और सुख सहज अक्षुण्णता के लिए,

तीन- स्वधन, स्वनारी/ स्व पुरुष तथा दया पूर्ण कार्य व्यवहार सम्पन्न जीवन दृढ़ता पूर्वक जीने में समर्थ होने के लिए,

चार- अमानवीयता से मानवीयता और मानवीयता से अति-मानवीयता की ओर गति के लिए, सुगम मार्ग पाने के लिए,

Page -6 of 219
-10 -9 -8 -7 -6 -5 -4 -3 -2