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अध्याय - 5

निर्भ्रमता ही विश्राम

  • अशेष मानव विश्राम की आशा एवं प्रतीक्षा में है ।
  • समाधान की ओर विश्राम का तथा समस्या की ओर श्रम का अनुभव है ।
  • समाधान एवं समस्या मानव के लिये बौद्धिक एवं भौतिक भेद से है ।
  • भौतिकता में समृद्धि ही समाधान अन्यथा समस्या है ।
  • बौद्धिकता में अनुभूति ही समाधान अन्यथा समस्या है ।
  • # बौद्धिकता में अनुभूति का अर्थ है सहअस्तित्व रूपी परम सत्य का अनुभव तथा इसके अध्ययन पक्ष को समाधान और इसमें व्यवधान पक्ष को समस्या की संज्ञा है ।
  • # अनुभूति तथा समृद्धि दोनों क्रियाएं हैं । अनुभव क्रिया पूर्वक ‘जीवन’ विकसित चेतना स्वत्व रूप में है । जबकि समृद्धि के लिए कार्य क्रिया शरीर यात्रा पर्यन्त एक आवश्यकता है । शरीर यात्रा के समापन के साथ ही इसकी आवश्यकता भी समाप्त होती है । इसलिए यह सामयिक है । इस प्रकार अनुभव सहज निरंतरता सिद्ध हुई ।
  • सफलता केवल निर्भ्रम अथवा निर्भ्रान्त अवस्था में ही है ।
  • ज्ञानावस्था के संपूर्ण मानव ही निर्भ्रान्त अवस्था के निकटवर्ती हैं । जागृति का तात्पर्य सहअस्तित्व में अनुभूति सहज प्रमाण है । जागृत मानव के निकटवर्ती मानव जागृति क्रम में होना पाया जाता है । यही भ्रांत मानव है । यही पशु मानव व राक्षस मानव है । अत: यह सिद्ध होता है कि जागृति भ्रमहीनता अथवा निर्भ्रान्त स्थिति की उपलब्धि है ।
  • जो जैसा है उसको वैसा जानना, मानना एवं पहचानना ही निर्भ्रान्त स्थिति की उपलब्धि है अथवा निर्भ्रमता की स्थिति है क्योंकि ‘है’ का अध्ययन है ।
  • # जो जैसा है उसको वैसा जानने का तात्पर्य है शब्द द्वारा इकाई के रूप, गुण, स्वभाव व धर्म इंगित हो जाना । सत्ता में सम्पूर्ण एक-एक है, सत्य व्यापक में समाहित जड़-चैतन्य प्रकृति है । यही परम सत्य है अत: सत्यता का ही- वस्तुस्थिति के रूप में
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