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अध्याय - 4

मानव सहज प्रयोजन

  • विश्राम के लिये ही इस पृथ्वी पर मानव अपने महत्व को जानने, पहचानने के प्रयास एवं प्रयोग में व्यस्त है ।
  • एक से अधिक मानव एकत्र या संगठित होने को परिवार, समुदाय व अखण्ड समाज संज्ञा है । जागृत मानव परम्परा में सार्वभौम व्यवस्था पूर्वक अखण्ड समाज प्रमाणित होता है ।
  • संगठन के लिए कारण साम्यता लक्ष्य साम्यता आवश्यक है। इसके निर्वाह के लिए कार्यक्रम साम्यता भी आवश्यक है ।
  • # अकेले में मानव के जीवन में कोई कार्यक्रम, व्यवहार एवं उत्पादन सिद्ध नहीं होता है। इस पृथ्वी पर मानव अधिकतम विकसित इकाई है। इससे विकसित इकाई इस पृथ्वी पर परिलक्षित नहीं है। मानव इसीलिए विकसित इकाई सिद्ध हुआ है,
    क्योंकि :-
  1. 1. वह मानवेतर सृष्टि के उपयोग, सदुपयोग, शोषण एवं पोषण में सक्षम है ।
  2. 2. मानव तथा मानवेतर तीनों सृष्टि में पाए जाने वाले गुण, स्वभाव एवं धर्म का ज्ञाता मानव ही है ।
  3. 3. मानवेत्तर सृष्टि में न पाये जाने वाले स्वभाव, व्यवहार एवं अनुभूति को मानव में पाया जाता है ।
  • सामाजिकता से आवश्यकता; आवश्यकता से प्रयोग एवं उत्पादन; प्रयोग एवं उत्पादन से अर्थोपार्जन; अर्थोपार्जन से उपयोग, सदुपयोग व प्रयोजनशीलता; उपयोग, सदुपयोग व प्रयोजनशीलता से व्यवहारिकता; व्यवहारिकता से मानवीयता तथा मानवीयता से अखण्ड सामाजिकता है । अखण्ड सामाजिकता के अर्थ में सार्थक है ।
  • अखण्डता :- अखण्डता सार्वभौमता सहज सूत्र व्याख्या रूप में मानव का प्रयोजन।
  • सामाजिकता:- सम्पर्क एवं संबंध में निहित मूल्यों का निर्वाह ही सामाजिकता है ।
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