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पाँच- अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में दायित्वों का सहजता पूर्वक निर्वाह करने के लिए,

छ:- आशित मानवीय संस्कृति एवम् सभ्यता के ज्ञान सहित प्रमाणित होने के लिए,

सात- राष्ट्र में मानवीयता पूर्ण संस्कृति एवम् सभ्यता सहज विकास के लिए आवश्यक विधि, व्यवस्था एवम् नीति पक्ष में पारंगत होने के लिए, इनके आधार भूत तथ्यों का अध्ययन आवश्यक है ।

उपरोक्त अध्ययन को सुलभ करने हेतु यह ग्रन्थ “मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)” का प्रथम भाग ‘मानव व्यवहार दर्शन’ के नाम से सम्पूर्ण मानव समाज को अर्पित करते हुए, मैं परम प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ ।

पूर्ण विश्वास है कि सांकेतिक तथ्यों का अध्ययन करने के पश्चात् यह ग्रन्थ आपके व्यवहार एवम् आचरण में मानवीयता पूर्ण दृष्टि, गुण व प्रवृत्ति को प्रस्थापित करने की प्रेरणा देगा एवम् आपके व्यक्तित्व के विकास में सहायक होगा जिससे -

भूमि ही स्वर्ग हो जाएगी, मानव ही देवता हो जायेगें,

धर्म सफल हो जाएगा और नित्य मंगल ही होगा ॥

- ए. नागराज

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