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  • दर्शन :- दृष्टि से प्राप्त समझ, अवधारणा और अनुभव ही दर्शन है ।
  • दृष्टि :- वास्तविकताओं को देखने, समझने, पहचानने और मूल्यांकन करने की क्रिया की दृष्टि संज्ञा है ।
  • विश्लेषण :- परिभाषाओं का प्रयोजन के अर्थ में व्याख्या की विश्लेषण संज्ञा है ।
  • परिभाषा :- अर्थ को इंगित करने के लिए प्रयुक्त शब्द समूह की परिभाषा संज्ञा है ।
  • व्यापक पूर्ण और इकाईयाँ अनंत हैं ।
  • व्यापक :- जो सर्व देश काल में विद्यमान है तथा नित्य वर्तमान है ।
  • इकाई :- छ: ओर से (सभी ओर से) सीमित पदार्थ पिण्ड की इकाई संज्ञा है । व्यापक वस्तु में सम्पूर्ण इकाईयाँ सहअस्तित्व में अविभाज्य रूप में वर्तमान हैं ।
  • अनंत :- संख्या में अग्राह्य क्रिया की अनंत संज्ञा है जिसको मानव गिनने में असमर्थ है अथवा गिनने की आवश्यकता नहीं बनती, यही अनन्त है ।
  • व्यापक सत्ता जागृत मानव में, से, के लिये कार्य-व्यवहार काल में नियम के रूप में, विचार काल में समाधान के रूप में, अनुभव काल में आनंद के रूप में और आचरण काल में न्याय के रूप में प्राप्त है क्योंकि सत्ता में संपूर्ण प्रकृति सम्पृक्त अविभाज्य रूप में विद्यमान है । यही सहअस्तित्व है ।
  • काल :- क्रिया की अवधि की काल संज्ञा है ।
  • नियम :- आचरण और क्रिया की नियंत्रण पृष्ठभूमि ही नियम है ।
  • समाधान :- क्यों और कैसे की पूर्ति (उत्तर) ही समाधान है ।
  • आनंद :- सहअस्तित्व रूपी परम सत्यानुभूति ही आनंद है ।
  • न्याय :- परस्परता में मानवीयतापूर्ण व्यवहार ही न्याय है ।
  • # मानवीयतापूर्ण व्यवहार :- धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणा पूर्ण स्वभाव; न्याय, धर्म एवं सत्यतापूर्ण दृष्टि और वित्तेषणा, पुत्रेषणा एवं लोकेषणात्मक प्रवृत्ति से युक्त व्यवहार ही मानवीयतापूर्ण व्यवहार है ।
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