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  • अस्तित्व में, से, के लिए जानने, पहचानने और अनुभव करने का प्रयास व अध्ययन मानव करता रहा है एवं करता रहेगा ।
  • ज्ञान को अनुभव काल में आनंद; सर्वत्र एक सा अनुभव में आने के कारण सत्य; ज्ञान में समस्त क्रियायें संरक्षित और नियंत्रित होने के कारण लोकेश; सर्वत्र एक सा विद्यमान होने के कारण व्यापक; चैतन्य के साथ चेतना; आत्मा से सूक्ष्मतम होने के कारण परमात्मा; प्रत्येक वस्तु सत्ता में सम्पृक्त, सक्रिय रहने के कारण से इसे निरपेक्ष ऊर्जा तथा अपरिणामिता के कारण पूर्ण संज्ञा है ।
  • सहअस्तित्व में अनुभव ही ज्ञान का उद्घाटन है । सहअस्तित्व में अनुभव में, से, के लिए अध्ययन है । ज्ञान ही विवेक एवं विज्ञान रूप में प्रमाण है । यही ज्ञानावस्था में मानव सहज मौलिकता है ।
  • # ज्ञान स्वयं क्रिया न करते हुए अथवा क्रिया न होते हुए मानव जीवन में अनुभव स्थिति में आनन्द सहज वैभव प्रमाण है । अनुभव पूर्वक अभिव्यक्ति ही ज्ञान है । ज्ञान ही जागृत मानव में समस्त सकारात्मक क्रियाओं का आधार अथवा प्रेरणा स्त्रोत है ।
  • ज्ञान ही व्यापक सत्ता है । इसकी ही शून्य संज्ञा है ।
  • क्रियाहीनता की स्थिति की शून्य संज्ञा है तथा ज्ञान स्वयम् क्रिया न करते हुए अथवा क्रिया न होते हुए भी समस्त क्रियाओं का आधार और प्रेरणा स्त्रोत है । अतः ज्ञान और व्यापक सत्ता दोनों एक ही सिद्ध होते हैं तथा इसमें अवस्थित होने से ही क्रिया के लिए प्रेरणा प्राप्त है । ज्ञान से रिक्त और मुक्त इकाई नहीं है ।

“सर्व शुभ हो”

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