- ● व्यवस्था ही विकास एवं जागृति।
- ● विकास एवं जागृति ही सृष्टि है।
- ● नियम ही न्याय, न्याय ही धर्म, धर्म ही सत्य, सत्य ही ऐश्वर्य (सहअस्तित्व), ऐश्वर्यानुभूति ही आनंद, आनंद ही जीवन, जीवन में नियम है।
- ● भ्रमित मानव ही कर्म करते समय स्वतंत्र एवम् फल भोगते समय परतन्त्र है।
- ● जागृत मानव कर्म करते समय तथा फल भोगते समय स्वतंत्र है।
- 15. मानव शरण
- ● अखण्ड सामाजिकता सार्वभौम व्यवस्था (सहअस्तित्व) सहज प्रमाण परंपरा।
- 16. मानवीय व्यवस्था
- ● मानवीयता। मानवत्व सहित व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी।
- 17. व्यक्ति में पूर्णता
- ● क्रियापूर्णता।
- ● आचरणपूर्णता।
- 18. समाज में पूर्णता
- ● सर्वतोमुखी समाधान।
- ● समृद्धि।
- ● अभय।
- ● सहअस्तित्व सहज प्रमाण परंपरा।
- 19. राष्ट्र में पूर्णता
- ● कुशलता।
- ● निपुणता।
- ● पाण्डित्य।