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  • # विज्ञानमय कोष का जागृत होना ही ज्ञान, विज्ञान और विवेक के रूप में विशेष ज्ञान का कारण है, विवेक और विज्ञान द्वारा ही दु:ख के कारण और निवारण की समझ विकसित होती है जिससे ही सुख, शांति, संतोष और आनंद की अनुभूति संभव है ।
  • चारों अवस्थाओं की सृष्टि की अपनी विशेषताएँ हैं तथा विशिष्टताऍँ रूप, गुण, स्वभाव और धर्म से संबंधित हैं ।
  • # रूप :- चारों अवस्थाओं की सृष्टि में रूप का निर्धारण आकार, आयतन और घनता के भेद से है ।
  • # गुण :- चारों अवस्थाओं में गुण सम, विषम अथवा मध्यस्थ के भेद से है ।

:- सापेक्ष शक्तियों की गुण संज्ञा है अथवा एक से अधिक एकत्र होने पर जो प्रभाव उत्पन्न होता है उसे गुण संज्ञा है ।

  • सम :- सृजन क्रिया में सहायक गुण को सम संज्ञा है ।
  • विषम :- विसर्जन क्रिया में सहायक गुण को विषम संज्ञा है ।
  • मध्यस्थ :- विभव क्रिया में सहायक गुण को मध्यस्थ संज्ञा है ।
  • यह तीनों सृजन, विसर्जन तथा विभव की क्रिया ऊर्जामय हैं ।
  • # स्वभाव :- पदार्थ में संगठन-विघटन क्रियाएं तथा विघटन-संगठन क्रियाएं व उनकी निरंतरता स्वभाव है ।
  • प्राणावस्था में सारक अथवा मारक या सारक-मारक क्रिया की निरंतरता स्वभाव है।
  • जीवावस्था में क्रूर, अक्रूर स्वभाव है ।
  • ज्ञानावस्था में धीरता, वीरता और उदारता, दया, कृपा व करुणा स्वभाव है ।
  • # धर्म :- पदार्थावस्था में अस्तित्व धर्म है ।
  • प्राणावस्था में अस्तित्व सहित पुष्टि धर्म है ।
  • जीवावस्था में अस्तित्व, पुष्टि सहित जीने की आशा धर्म है ।
  • ज्ञानावस्था में अस्तित्व, पुष्टि, जीने की आशा सहित सुख ही धर्म है ।
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