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  • गुण :- सापेक्ष शक्तियों की गुण संज्ञा है । सम, विषम, मध्यस्थ के रूप में पहचान होती है, यही प्रभाव है ।

:- एक से अधिक एकत्र होने पर जो प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे गुण की संज्ञा है ।

  • स्वभाव :- मौलिकता ही स्वभाव है ।

:- गुणों की उपयोगिता की स्वभाव संज्ञा है ।

  • धर्म :- धारणा ही धर्म है ।
  • # सृष्टि का उपरोक्त वर्गीकरण कोष गठन भेद से है ।
  • कोष :- आशय तथा प्रयोजन सहित निश्चित क्रिया विशेष को कोष संज्ञा है । प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार संपदा ही कोष है ।
  • कोष का तात्पर्य सम्पन्नता से है । प्रेरणा सम्पन्नता का अर्थ है ऊर्जा सम्पन्नता, बल सम्पन्नता व चुम्बकीय बल सम्पन्नता । प्रेरणा सम्पन्नता ही प्राणमय कोष है । इसी प्रेरणा सम्पन्नता के आधार पर अंशों की परस्पर पहचान, निश्चित दूरी में नियन्त्रित रह कर परमाणु के रूप में प्रमाणित होता है । परमाणु में यह प्रवृत्ति ही प्राणमय कोष है ।
  • # अनंत रचनाएँ पाँच कोषों के गठन भेद के अंतर्गत परिलक्षित होती है । इन पाँच कोषों को क्रमश: प्राणमय कोष, अन्नमय कोष, मनोमय कोष, आनंदमय कोष और विज्ञानमय कोष संज्ञा है ।
  • प्राणमय कोष, अन्नमय कोष व मनोमय कोष जड़ संसार में; तथा मनोमय कोष, आनंदमय कोष व विज्ञानमय कोष चैतन्य संसार में स्पष्ट अथवा प्रमाणित होते हैं ।
  • अन्नमय कोष :- ग्रहण और विसर्जन करने वाले अंग की अन्नमय कोष संज्ञा है ।
  • प्राणमय कोष :- प्रेरणा को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने वाले अंग की प्राणमय कोष संज्ञा है ।
  • मनोमय कोष :- चयन करने वाले अथवा चुनाव करने वाले अंग की मनोमय कोष संज्ञा है ।
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