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  • भार, आकर्षण से; आकर्षण, परस्परता से; परस्परता, लघुता एवं गुरुता से; लघुत्व एवं गुरुत्व, रचना एवं सापेक्ष ऊर्जाओं से; रचना एवं सापेक्ष ऊर्जा, क्रिया से; क्रिया, पदार्थ से और पदार्थ का ह्रास एवं विकास सापेक्ष ऊर्जा के सदुपयोग एवं दुरूपयोग से सापेक्षित है।
  • समस्त पदार्थ निरपेक्ष ऊर्जा में संपृक्त व समाहित हैं तथा संपूर्ण सृष्टि की स्थिति तथा गति निरपेक्ष ऊर्जा में है ।
  • प्रत्येक चेष्टा से सापेक्ष ऊर्जा का प्रसव है ।
  • मूल चेष्टा के लिए निरपेक्ष ऊर्जा सबको प्राप्त है ही ।
  • मूल चेष्टा :- पदार्थ के परमाण्विक स्थिति में वातावरण के दबाव से मुक्त चेष्टा की मूल चेष्टा संज्ञा है ।
  • किसी भी भूमि पर पूर्ण सृष्टि तभी संभव है जब वह अपने में आवश्यक संपूर्ण रस, उपरस एवं वायु से समृद्ध हो जाये । इस प्रकार से इस असीम अवकाश में अनंत भूमि अपनी प्रगति के अनुसार पूर्ण-विकसित, अर्धविकसित, अल्प विकसित एवं अविकसित अवस्था में हैं । रस, उपरस का प्रमाण रासायनिक क्रियाकलाप और वैभव के रूप में है ।
  • अविकसित सृष्टि पदार्थावस्था की सृष्टि है । समस्त मृद्, पाषाण, मणि एवं धातु की गणना अविकसित सृष्टि में है । अल्प-विकसित सृष्टि प्राणावस्था की सृष्टि है । समस्त वनस्पति प्राणावस्था की सृष्टि में सम्मिलित हैं । अर्ध-विकसित सृष्टि जो जीवावस्था की सृष्टि है । मानवेतर अण्डज और पिण्डज सृष्टि की गणना जीवावस्था में है । ज्ञानावस्था में शरीर रचना पूर्ण-विकसित सृष्टि है । यह स्पष्ट हो जाना आवश्यक है कि अल्प-विकसित सृष्टि में अविकसित सृष्टि; अर्ध-विकसित सृष्टि में अल्प-विकसित और अविकसित तथा पूर्ण-विकसित सृष्टि में अर्ध विकसित, अल्प-विकसित तथा अविकसित सृष्टि समाहित है ही क्योंकि गुरु मूल्य में लघु मूल्य समाया रहता है ।
  • फलतः उच्चकोटि की सृष्टि में निम्न कोटि की सृष्टि के गुण, स्वभाव और धर्म विलय रहते ही हैं ।
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