- ⁘ प्रयोजन :- जागृति पूर्वक अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में तन, मन, धन का नियोजन प्रयोजन है ।
- ⁘ व्यवहारिकता :- मानवीयता पूर्ण आचरण की व्यवहारिकता संज्ञा है ।
- ● अखण्ड सामाजिकता का अध्ययन मानवीय स्वभाव, विषय एवं दृष्टि के आधार पर ही है, जिसके संरक्षण हेतु सामाजिक व्यवस्था है ।
- ● उपरिवर्णित आधार पर अध्ययन करने पर मानव प्रवृत्तियों की कुल तीन प्रकार से गणना होती है :-
1. अमानवीयता 2. मानवीयता 3. अतिमानवीयता ।
- ⁘ अमानवीय स्वभाव, विषय एवं दृष्टि का संरक्षण, संवर्धन एवं प्रोत्साहन देने हेतु की गई व्यवस्था अमानवीय अथवा पाशविक प्रवृत्ति व्यवस्था है ।
- ⁘ अमानवीय स्वभाव :- दीनता, हीनता एवम् क्रूरता ही अमानवीय स्वभाव है ।
- ⁘ अमानवीय विषय :- आहार, निद्रा, भय एवम् मैथुन ही अमानवीय विषय है ।
- ⁘ अमानवीय दृष्टि :- प्रियाप्रिय, हिताहित एवम् लाभालाभ ही अमानवीय दृष्टि है ।
- ⁘ प्रिय :- ऐन्द्रिय सुख सापेक्ष क्रिया की प्रिय संज्ञा है ।
- ⁘ हित :- शरीर स्वास्थ्य वर्धन एवं पोषण क्रिया की हित संज्ञा है ।
- ⁘ लाभ :- श्रम से अधिक द्रव्य पाने की क्रिया को लाभ अथवा लघु मूल्य के बदले गुरु मूल्य आदाय ही लाभ है ।
- ⁘ दीनता :- अपने दु:ख को दूसरों से दूर कराने हेतु जो आश्रय प्रवृत्ति है, उसकी दीनता संज्ञा है।
- # दीनता अभावजन्य या अक्षमताजन्य दो प्रकार की होती है ।
- ⁘ अभाव :- उत्पादन से अधिक उपभोग एवं उपयोग की इच्छा ही अभाव है । आलस्य, प्रमाद, अज्ञान, अप्राप्ति, प्राकृतिक प्रकोप तथा सामाजिक असहयोग अभाव के कारण हैं ।