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  • सामाजिकता का निर्वाह कर्त्तव्य एवं निष्ठा से है, जिससे अखण्डता-सार्वभौमता रुप में सामाजिकता का विकास तथा अन्यथा से ह्रास है ।
  • निर्वाह :- समाधान, समृद्धि सहित उपयोग, सद्उपयोग व प्रयोजनों को प्रमाणित करना अथवा परस्पर पूरक सिद्ध होना ।
  • कर्त्तव्य :- मानवीयता पूर्ण विधि से करने योग्य कार्य-व्यवहार एवं मूल्य निर्वाह क्रिया ही कर्त्तव्य है ।
  • निष्ठा :- कर्त्तव्य एवं दायित्व निर्वाह की निरंतरता ही निष्ठा है ।
  • # सामाजिकता के निर्वाह के लिये समाधान, समृद्धि आवश्यक है, इसके लिये बौद्धिक एवं भौतिक साधन है ।
  • साधन :- साधक को अथवा साध्य के लिये आवश्यकीय वस्तु एवं पात्रता को साधन संज्ञा है, जो हर साधक में अपेक्षणीय है ।
  • बौद्धिक साधन :- क्षमता, योग्यता एवं पात्रता के रूप में बौद्धिक साधन है ।
  • भौतिक साधन :- सामान्य एवं महत्वाकाँक्षाओं के लिये आवश्यकीय रचना एवं वस्तु उत्पादन के रूप में भौतिक साधन हैं ।
  • # उपरोक्तानुसार वर्णित साधनों को प्रयुक्त करने हेतु जो प्रयत्न, प्रयास एवं व्यवसाय (उत्पादन क्रिया) है, उसमें इच्छा का होना आवश्यक है ।
  • जो जिसको पाने के लिये तीव्र इच्छा से संवेगित होता है, वह उसे पाये बिना तृप्त नहीं होता है ।
  • # बौद्धिक एवं भौतिक साधनों की प्रयुक्ति के लिए इच्छा, किसी न किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिये ही होती है । यह आवश्यकता स्वार्थ, परार्थ अथवा परमार्थ भेद से होती है ।
  • स्वार्थ :- सीमित एवं संकीर्ण अर्थ नियोजन योजना की स्वार्थ संज्ञा है । जो एक मानव अथवा परिवार तक ही सीमित रहती है अथवा वैयक्तिक या पारिवारिक इन्द्रिय सुख-सुविधा के लिये जो विचार एवं व्यवहार है वह स्वार्थ है ।
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