अध्ययन है और इसी की समझ और प्रमाण उपलब्धि है । उपलब्धि मात्र सहअस्तित्व में, से, के लिए होती है । सत्यता सहअस्तित्व स्वरूप है क्योंकि नित्य वर्तमान है ।
- ● सत्यता का अध्ययन पूर्ण हो जाना ही निर्भ्रमता है ।
- ● सत्यानुभूति के लिये भ्रम का निवारण परमावश्यक है, जो मानवीयता पूर्ण जीवन से ही चरितार्थ होता है ।
- ● निर्भ्रमता के लिए विवेक एवं विज्ञान का अध्ययन व कर्माभ्यास, व्यवहाराभ्यास आवश्यक है । इसके द्वारा किये गये अनुभव, विचार तथा व्यवहार के समन्वय से ही क्रमश: अध्यात्मिक, बौद्धिक तथा भौतिक स्तर में अनुभूतियाँ एवं उपलब्धियाँ हैं ।
- ● अनुभव मात्र सत्य सहज ही है क्योंकि यह अपरिवर्तनीय है, अनुभव यदि परिवर्तनशील हो तो वह अनुभव नहीं है ।
- ● भौतिक क्रिया परिणामी है, अत: सामयिक सिद्ध है । समस्त क्रियाएं नियमों से अनुशासित तथा संरक्षित परिलक्षित होती हैं । नियम अपरिवर्तनीय है, इसलिये नियम सत्य एवं नित्य सिद्ध है ।
- ● सत्य बोध से बौद्धिक समाधान अन्यथा में समस्या है । नियम बोध के बिना सत्य बोध सम्भव नहीं है ।
- ● अनुभवगामी विधि से सत्यबोध के बिना सत्यानुभूति अभ्युदय, सर्वतोमुखी समाधान संभव नहीं है ।
- # अनुभवगामी बोध (अवधारणा) :- आत्मा अथवा अनुभव की साक्षी में स्मरण पूर्वक बुद्धि में होने वाली स्वीकृति सहज क्रियाकलाप ।
गुरु द्वारा अनुभव मूलक विधि से कराये गये अध्ययन के फलस्वरूप शिष्य में न्याय, धर्म, सत्य का साक्षात्कार पूर्वक बुद्धि में स्वीकृत होना ।
- # अनुभव मूलक बोध :- सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में अनुभव और उसकी निरन्तरता के फलस्वरूप अनुभव सहज प्रभाव ही अनुभव बोध है । ऐसे अनुभव बोध के अनन्तर सहज संकल्प की निरन्तरता है । ऐसे बोध और संकल्प का साक्षात्कार ही अनुभवमूलक चिन्तन है । ऐसे चिन्तन का चित्रण और तुलन क्रिया ही अनुभव मूलक