विचार है । जागृति मूलक विचार के फलस्वरूप विवेक सम्मत विज्ञान एवं विज्ञान सम्मत विवेक प्रमाणित होता है । फलस्वरूप मूल्यों का आस्वादन सहित मानव परम्परा में संबंधों की पहचान, स्वीकृति, निर्वाह, निरन्तरता ही जागृति सहज अभिव्यक्ति, संप्रेषणा एवं प्रमाण है ।
- ⁘ बोध :- बुद्धि में अनुभव बोध व चित्त में अनुभव प्रतीति है ।
- ⁘ प्रतीति, आभास, भास :- सहअस्तित्व सहज अनुभव आत्मा में होता है । जिसका अनुभवमूलक विधि से बोध बुद्धि में होता है । बुद्धि और चित्त के योग में अनुभव की ‘प्रतीति’ होती है, यही अनुभव का चिन्तन है । चित्त और वृत्ति के योग में अनुभव का ‘आभास’ होता है, जो स्वयं न्याय, धर्म, सत्य रूप में तुलन क्रिया है । वृत्ति और मन के योग में अनुभव का ‘भास’ होता है । जो मूल्यों का आस्वादन और संबंधों का चयन के रूप में प्रमाणित हो जाता है ।
- ● जब तक ‘जीवन’ भ्रमित रहता है अथवा मानव भ्रमित रहता है, परंपरा में आत्मबोध रहित बुद्धि को अहंकार नाम दिया गया । भ्रम का अस्तित्व नहीं है । इससे स्पष्ट है कि भ्रम मानव के द्वारा किसी भय प्रलोभनवश स्वीकार की गई मान्याताएँ हैं । मान्यताएँ (भ्रम) चित्त में होने वाले चित्रण तक ही सीमित हैं । अत: बुद्धि भ्रमित नहीं होती । बुद्धि चुप रहती है । अध्ययन, बोध, अनुभव विधि से ही बुद्धि जागृत होती है ।
- ● अहंकार एवं भ्रम यह दोनों सत्यता के प्रति अनर्हता के द्योतक हैं ।
- ● सत्य-बोध अध्ययन सहज अंतिम उपलब्धि है तथा अनुभव स्वभाव है ।
- ● सत्यबोध के बिना सत्यानुभूति तथा सत्यानुभूति के बिना विश्राम नहीं है ।
- ● सत्य, मात्र सत्ता में सम्पृक्त जड़ चैतन्य प्रकृति ही है । यही सहअस्तित्व रूपी शाश्वत् सत्य है ।
- ● सत्यानुभूति से अतिसंतृप्ति (परमानंद), सत्य बोध से तृप्ति (आंनद एवं समाधान), सत्यपूर्ण व्यवहार (मानवीयतापूर्ण व्यवहार) से एकसूत्रता (समाधान एवं सहअस्तित्व) की अनुभूति और उपलब्धि है ।