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  • अनंत इकाईयाँ व्यापक वस्तु में प्रेरणा पाते हुए क्रियाशील हैं, मानव व्यापक वस्तु में प्रेरणा पाते हुए अनुभव के लिए प्यासा है । अनुभव हेतु अर्हता के अभाव में ही इसके योग्य क्षमता योग्यता पात्रता के विकास के लिए मानव श्रमशील है अथवा श्रम में व्यस्त है ।
  • ज्ञान अनुभूति के बिना मानव में विश्राम नहीं है, इसीलिये जागृति का अभाव नहीं है क्योंकि श्रम का क्षोभ ही विश्राम की तृषा है ।
  • व्यवसाय, प्रयोग, व्यवहार, उपयोग व सदुपयोग की क्रिया, प्रक्रिया, पद्धति व उपलब्धियाँ प्रधानत: विवेक सम्मत विज्ञान के अध्ययन पर निर्भर हैं।
  • अनुभव, प्रमाण, बोध की संप्रेषणा मेधसतंत्र के माध्यम से होता है । यह मानव परंपरा में ही होता है ।
  • जागृत मानव एवं मनोवेग के बराबर में उपलब्धि मानवीय परंपरा है ।
  • # श्रम, गति एवं परिणाम परस्पर निम्नानुसार परिलक्षित हैं - गति एवं परिणाम के फलन में उपलब्धि श्रम है । श्रम एवं गति के फलन में उपलब्धि परिणाम है । परिणाम एवं श्रम के फलन में उपलब्धि गति है ।
  • # पूर्व में वर्णन किया जा चुका है कि विकसित इकाई में अविकसित और समान इकाई को पहचानने व समझने की प्रवृत्ति है । उसी के तारतम्य में यह परिलक्षित होता है कि ज्ञानावस्था की एक सामान्य इकाई ने जीवावस्था की अनेकानेक इकाईयों का उपयोग, सदुपयोग व भ्रमवश दुरूपयोग भी किया है । इसी क्रम में जीवावस्था की एक सामान्य इकाई प्राणावस्था की अनेकानेक तथा प्राणावस्था की एक सामान्य इकाई पदार्थवस्था की अनेकानेक इकाईयों के लिए पूरक होते हैं । जागृति के क्रम में प्राप्त क्षमता, योग्यता एवं पात्रता के आधार पर भी उक्त सिद्धांत ही परिलक्षित होता है।
  • # ज्ञानावस्था की एक निर्भ्रान्त इकाई अनेक भ्रान्ताभ्रान्त तथा भ्रान्त इकाईयों के लिए अनुसरण योग्य तथा समाधान की ओर प्रेरक सिद्ध हुई है ।
  • पदार्थावस्था में अस्तित्व यथास्थिति में संतुलन क्रिया; प्राणावस्था में अस्तित्व एवं पुष्टि और यथास्थिति में संतुलन क्रिया; जीवावस्था में अस्तित्व, पुष्टि तथा जीने की आशा सहित उपभोग प्रवृत्ति और यथास्थिति में संतुलन क्रिया; ज्ञानावस्था में अस्तित्व, पुष्टि,
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