जागृति पूर्वक जीने की आशा सहित समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व को प्रमाणित करने के रूप में संतुलन क्रिया अध्ययन के लिए संपूर्ण वस्तु है ।
- ● जागृति के मूल में सिद्धांत यह है कि ‘मानव’ सही में एक है तथा संघर्ष के मूल में कारण मानव गलती में अनेक है ।
- ● यदि उपरोक्त सिद्धांत हृदयंगम हो जाये तो विश्व में सामाजिकता के लिए उपयुक्त वातावरण स्वयमेव उपस्थित हो जाये ।
- ● मानव को पूर्ण सुखी (निर्भ्रम) होने का प्रमाण ही बौद्धिक समाधान और भौतिक समृद्धि सहज प्रमाण है ।
- ● भौतिक समृद्धि ‘आवश्यकता से अधिक उत्पादन’ की नीति आचरित करने से ही सिद्ध होती है । पुन: सदुपयोगात्मक आचरण से ही जागृति प्रमाणित हुआ है अन्यथा ह्रास अवश्यम्भावी है ।
- ● बौद्धिक समाधान हेतु व्यवहारिक सुगमता, सामाजिकता और मानवीयता से संपन्न अध्ययन की व्यवस्था चाहिये ।
- ⁘ व्यवहारिक सुगमता = न्यायसम्मत नीति संपन्न आचरण ।
- ● बौद्धिक समाधान के लिए व्यवहारिक एकसूत्रता अनिवार्य है । एकसूत्रता अपने में ज्ञान-विज्ञान-विवेक में संगीत है अथवा पूरकता है ।
- ● वैचारिक एवं व्यवहारिक संतुलन के लिए मानवीयता की सुरक्षा तथा संरक्षण की नीति एवं रीति आवश्यक है ।
- ⁘ सुरक्षा :- जागृति सहज यथा स्थिति को बनाये रखना सुरक्षा है ।
- # जागृत मानव परंपरा में मानवीयता ही यथा स्थिति है । मानवीयता की सुरक्षा में संस्कृति, सभ्यता, विधि (मानवीय आचार संहिता) एवं व्यवस्था चारों परस्पर पूरक तथ्य हैं । इन चारों पक्ष का अध्ययन पूर्ण हुए बिना मानवीयता का संरक्षण संभव नहीं है, क्योंकि गलती एवं अपराध प्रवृत्ति व कृत्य से अमानवीयता उजागर होती है । मानवीयता से पूर्ण होने के पूर्व मानव अमानवीयता के स्तर में अवस्थित है ही ।