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  • # शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गन्धेन्द्रियों द्वारा आहार, निद्रा, भय और मैथुन से होने वाली सभी तृप्तियाँ ऐन्द्रिय है जो सामयिक होती है ।
  • # वित्तेषणा, पुत्रेषणा, लोकेषणा तथा समाधान से प्राप्त तृप्ति की बौद्धिक तृप्ति संज्ञा है जो दीर्घकालीन या दीर्घ परिणामी होती है ।
  • # ज्ञानानुभूति तथा पूर्ण विश्राम की आध्यात्मिक तृप्ति संज्ञा है जो अपरिणामी अथवा नित्य है ।
  • वित्तेषणा :- सदुपयोग के अर्थ में न्याय दृष्टि पूर्वक धन बल कामना ही वित्तेषणा है।

:- धन : आहार, आवास, अलंकार, दूरश्रवण, दूरगमन, दूरदर्शन संबंधी वस्तुएँ।

  • पुत्रेषणा :- परिवार एवं समाज व्यवस्था के अर्थ में जन-बल कामना एवं वंश वृद्धि में विश्वास की पुत्रेषणा संज्ञा है ।
  • लोकेषणा :- अखण्ड समाज व्यवस्था के अर्थ में न्याय, धर्म दृष्टि पूर्वक यश-बल कामना ही लोकेषणा है ।
  • समाधान :- कैसे और क्यों की पूर्ति (उत्तर) ही समाधान है ।
  • विश्राम :- जिसमें श्रम नहीं समाधान है, जिसके द्वारा श्रम नहीं होता है वह अनुभूति ही विश्राम है ।
  • # इच्छानुसार द्रवित होने वाले अंग को इन्द्रिय, बोध करने-कराने वाले अंग को बुद्धि, सहअस्तित्व में अनुभूति अंग आत्मा, समस्त आत्माओं के आधारभूत सत्ता की अध्यात्म व परमात्मा संज्ञा है ।
  • आवश्यकता तथा उपयोगिता का निर्णय उपरोक्त तीन तृप्तिकारक अथवा सुखकारक लक्ष्य भेद से निर्णय किया जाता है ।
  • ऐन्द्रिक तृप्ति क्षणिक, बौद्धिक तृप्ति दीर्घ परिणामी तथा आध्यात्मिक (अनुभव) तृप्ति नित्य अथवा अपरिणामी सिद्ध होती है ।
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