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  • प्रियाप्रिय, विषय सापेक्ष; हिताहित, शरीर सापेक्ष; लाभालाभ, वस्तु व सेवा सापेक्ष; न्यायान्याय, व्यवहार सापेक्ष; धर्माधर्म, समाधान सापेक्ष तथा सत्यासत्य, अस्तित्व में अनुभव सापेक्ष पद्धति से स्पष्ट होता है ।
  • # प्रिय विषय प्राप्त होने पर इन्द्रिय तृप्ति होती है । अप्रिय विषय प्राप्त होने पर इन्द्रियाँ तृप्त नहीं होती है ।
  • # हृदय के तृप्त होने पर हित तथा स्वास्थ्य लाभ होता है । हृदय के अतृप्त रहने पर अहित तथा स्वास्थ्य का लाभ नहीं होता है ।
  • इंद्रिय तृप्ति सामयिक प्रतिक्रिया है ।
  • तृप्ति :- आंदोलनों से मुक्त क्रिया ही तृप्ति है ।
  • आंदोलन :- हृदय के सम्वर्धन तथा संरक्षण की अक्षुण्णता इसके क्रिया एवं गति के संतुलन से बनी रहती है, इस क्रिया एवं गति का घट जाना या बढ़ जाना ही आंदोलन है । आंदोलन का संबंध मूलतः संवर्धन तथा संरक्षण से है ।
  • # इन्द्रिय तृप्ति से हृदय तृप्ति आवश्यक नहीं है, पर हृदय तृप्ति से इन्द्रिय तृप्ति होती है ।
  • लघु मूल्य के बदले गुरु मूल्य का आदाय (प्राप्ति) लाभ है ।
  • लघु मूल्य के बदले गुरु मूल्य का प्रदाय तीन परिस्थितियों में होता है :-

(1) विवशता वश, (2) स्वेच्छा वश तथा (3) अज्ञान वश ।

  • समस्त व्यवहार कुल छ: दृष्टियों में परिलक्षित है :-

(1) प्रियाप्रिय (2) हिताहित (3) लाभालाभ (4) न्यायान्याय (5) धर्माधर्म और (6) सत्यासत्य ।

  • # अमानवीय दृष्टि से युक्त मानवों का व्यवहार मात्र तीन दृष्टियों यथा-प्रियाप्रिय, हिताहित और लाभालाभ के आश्रय में है । मानवीय दृष्टि से युक्त मानव का व्यवहार न्यायान्याय, धर्माधर्म एवं सत्यासत्य के आश्रय में है ।
  • मानव के लिए आवश्यकीय व्यवहार न्यायपूर्ण नियमों का पालन है तथा आवश्यकीय विचार धर्मपूर्ण नियमों का पालन है ।
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