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  • राक्षस मानव में क्रूरता प्रधान, दीनता एवं हीनतावादी कार्य व्यवहार होता है ।
  • # (तीन) मानवीयतापूर्ण मानव एक वर्ग में है ।

मानवीय दृष्टि : न्याय, धर्म, सत्य ।

मानवीय विषय : पुत्रेषणा, वित्तेषणा, लोकेषणा ।

मानवीय स्वभाव : धीरता, वीरता, उदारता ।

  • # अतिमानवीयतापूर्ण मानव पुन: दो वर्ग में है :-

(चार) देव मानव और (पाँच) दिव्य मानव ।

  • # अतिमानवीयता पूर्ण मानव की दृष्टि, विषय और स्वभाव निम्नानुसार है :-
  • देव मानव दृष्टि- धर्म प्रधान न्याय और सत्य ।

विषय - लोकेषणा ।

स्वभाव - धीरता, वीरता, उदारता तथा दया प्रधान कृपा, करूणा ।

  • दिव्य मानव दृष्टि-परम सत्य ।

विषय - सहअस्तित्व रूपी परम सत्य ।

स्वभाव - करुणा प्रधान दया, कृपा ।

  • # उपरिवर्णित पाँच श्रेणी के मानव अपने से अविकसित पर निरीक्षण, परीक्षण एवं सर्वेक्षण पूर्वक व्यवहार एवं अधिकार करते हैं ।
  • अधिकार :- अपने सही मन्तव्य के अनुसार अन्य को गति एवं कला प्रदान करना और उसका उपयोग, सदुपयोग तथा पोषण करने की क्षमता, योग्यता एवं पात्रता होना ही अधिकार है ।
  • उपरोक्त विधि से जागृति पूर्वक ही मानव अखण्डता, सार्वभौमता सहज सूत्र व्याख्या सम्पन्न होता है क्योंकि विकसित द्वारा अविकसित को प्रेरित करने का अधिकार होता है जबकि अविकसित द्वारा विकसित का मात्र अध्ययन ही संभव है ।
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